राखी का मुहूर्त
जयपुर। वेदाचार्य पंडित श्रीनंदन मिश्र के अनुसार, मंगलवार को रात 10.35 मिनट तक पूर्णिमा रहेगी। सुबह 9.21 मिनट तक भद्रा रहेगा। भद्रा में शुभ कार्य वर्जित रहते हैं इसलिए इस समय को छोड़कर पूरे दिन राखी बांधी जा सकती है।
भद्रा को छोड़कर दोपहर 2.05 तक चर, अमृत व लाभ के श्रेष्ठ चौघडिए इसके अलावा दोपहर 3.40 से 5.16 तक शुभ के चौघडिए में राखी बांधना शुभ रहेगा।
रक्षाबंधन श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाए जाने वाला विशेष त्यौहार है। सावन में मनाए जाने के चलते इसे "सावनी " या "सलूनो" भी कहते हैं। श्रावण नक्षत्र में बांधा गया रक्षासूत्र अमरता, निडरता, स्वाभिमान, कीर्ति, उत्साह एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाला होता है। पौराणिक काल में तो पत्नी भी अपने पति के सौभाग्य के लिए रक्षासूत्र बांधा करती थी लेकिन, परंपरा बदलते-बदलते इसकी सार्थकता भाई-बहन के रिश्तों में सिमट गई । भाई का बहन के प्रति पवित्र प्यार का प्रतीक है रक्षाबंधन। हमारी भावनात्मक एकता तथा सामाजिक पवित्रता का त्यौहार है रक्षाबंधन। इस बार रक्षाबंधन मंगलवार 24 अगस्त को मनाया जाएगा।
रक्षाबंधन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे ज्यादा महत्व है। राखी कच्चे धागे जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे तथा सोने या चांदी जैसी महंगी वस्तु तक की हो सकती है। बहने अपने भाई की लंबी उम्र के कामना करते हुए उसकी कलाई पर राखी बांधती हैं। कभी-कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बांधी जाती है। आजकल पर्यावरण संरक्षण के लिए पेड़ों को राखी बांधने का ट्रेंड भी शुरू हो गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य भी परस्पर भाईचारे के लिए एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बांधते हैं।
रक्षाबंधन का अनुष्ठान रक्षाबंधन पर सुबह सवेरे स्नानादि से निपट कर बहनें पूजा की थाली सजाती हैं। थाली में राखी के साथ रोली या हल्दी, चावल, दीपक, मिठाई और कुछ पैसेहोते हैं। भाई तैयार होकर टीका करवाने के लिए पूजा या किसी उपयुक्त स्थान पर बैठते हैं। अभिष्ट देवता की पूजा करने के बाद रोली या हल्दी से भाई का टीका करके चावल को टीके पर लगाया जाता है और सिर पर छिड़का जाता है, उसकी आरती उतारी जाती है,दाहिनी कलाई पर राखी बांधी जाती है और पैसों से न्यौछावर करके उन्हें गरीबों में बांट दिया जाता है। भारत के अनेक प्रांतों में भाई के कान के ऊपर भोजली या भुजरियां लगाने की प्रथा भी है। भाई बहन को उपहार या धन देता है। इस प्रकार रक्षाबंधन के अनुष्ठान के पूरा हो जाता है। यह पर्व भारतीय समाज में काफी व्यापकता और गहराई से समाया हुआ है। इस पर्व का सामाजिक महत्व तो है ही, इसके अलावा धर्म, पुराण, इतिहास, साहित्य और सिनेमा भी इससे अछूते नहीं हैं।
सामाजिक प्रसंग
इस दिन बहनें अपने भाई के दाएं हाथ पर राखी बांधकर उसके माथे पर तिलक करती हैं और उसकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। बदले में भाई उनकी रक्षा का वचन देता है। भाई बहन एक दूसरे को मिठाई खिलाते हैं। आत्मीयता और स्नेह के बंधन से रिश्तों को मजबूती प्रदान करने वाले इस त्यौहार में भाई-बहन के अलावा अन्य संबंधों में भी राखी बांधने का प्रचलन है। जैसे गुरू शिष्य को रक्षासूत्र बांधता है तो शिष्य गुरू को ।
रक्षाबंधन पर्व सामाजिक और पारिवारिक एकबद्धता या एकसूत्रता का सांस्कृतिक प्रतीक रहा है। शादी के बाद बहनें पराए घर में चली जाती हैं। इस दिन हर साल अपने सगे ही नहीं दूरदराज के भाइयों तक को रक्षासूत्र बांधकर बहनेें अपने रिश्तों का नवीनीकरण करती रहती हैं। इस पर्व में दो परिवारों का और दो कुलों का जुड़ाव होता है। जो कड़ी टूट गई है उसे फिर से जोड़ा जाता है।
पौराणिक प्रसंग
भविष्य पुराण में वर्णन है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नजर आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा कर वृहस्पति के पास गए। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र कर अपने पति के हाथ पर बांध दिया । वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मंत्र शक्ति से विजय हुए थे। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है। इसके साथ ही स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत नामक कथा में भी रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है।
ऎतिहासिक प्रसंग
ऎतिहासिक मान्याताओं के अनुसार राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएं विजयश्री के विश्वास के साथ उनके माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ ही हाथ मेें रेशमी धागा भी बांधती थी। राखी के साथ एक प्रसिद्ध प्रसंग भी जुड़ा है। कहते हैं मेवाड़ की महारानी कर्मावती को गुजरात के सम्राट बहादुर शाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्वसूचना मिली। रानी लड़ने में असमर्थ थी। उसने दिल्ली के मुगल राजा हुमायूं को राखी भेज कर भाई बनाया और बहन की रक्षा की याचना की। हुमायूं ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुंचकर बहादुर शाह के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। हुमायूं ने मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती और उसके राज्य की हिफाजत की।
एक अन्य प्रसंग में कहा गया है कि सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पोरस को राखी बांधकर अपना मुंह बोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया। पोरस ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दिया।
महाभारत में भी इस बात का उल्लेख है कि जब ज्येष्ठ पाण्डव युघिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को पार कैसे कर सकता हूं तब भगवान शंकर ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्यौहार मनाने की सलाह दी थी। उनका कहना था कि राखी के इस रेशमी धागे में वह शक्ति है जिससे आप हर आपत्ति से बाहर आ सकते हैं। इस समय द्रौपदी द्वारा कृष्ण को तथा कुन्ती द्वारा अभिमन्यु को राखी बांधने का उल्लेख भी मिलता है।
महाभारत में रक्षाबंधन से संबंघित कृष्ण और द्रौपदी का एक और वृतांत निहित है। जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर उनकी तर्जनी पर पट्टी बांध दी। यह श्रवण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया । कहते हैं कि परस्पर एक दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना रक्षाबंधन के पर्व मे यहीं से आई है।
राजस्थान में राखी का रिवाज राजस्थान में राम राखी और चूड़ा राखी या लूंबा बांधने का रिवाज है। राम राखी में लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फुंदना लगा होता है और यह राखी केवल भगवान को बांधी जाती है। चूड़ा राखी भाभियों की चूडियों में बांधी जाती है। जोधपुर में राखी के दिन केवल राखी ही नहीं बांधी जाती है बल्कि दोपहर में पद्मसर और मिनकानाडी पर गोबर, मिट्टी और भस्मी से नहा कर शरीर को शुद्ध किया जाता है। इसके बाद धर्म तथा वेदों के प्रवचनकर्ता अरूंधती, गणपति, दुर्गा , गोभिला तथा सप्तर्षियों के दर्भ के चट यानी पूजा स्थल बनाकर मंत्रोच्चारण के साथ पूजा करते हैं। उनका तर्पण कर पितृऋण चुकाया जाता है। धार्मिक अनुष्ठान करने के बाद घर आकर हवन किया जाता है, वहीं रेशमी डोरे से राखी बनाई जाती है। राखी में कच्चे दूध से अभिमंत्रित करने के बाद भोजन करते हैं।
अन्य राज्यों में राखी
बिहार और बंगाल में इस श्रावणी पूçण्üामा को गुरूपूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस दिन वहां ब्रा±मणों की विशेष पूजा होती है। तमिलनाडु, केरल , महाराष्ट्र और उड़ीसा के दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इस पर्व को अवनि अवित्तम कहते हैं। यज्ञोपवतीधारी ब्राह्मणों के लिए यह दिन बहुत खास है। इस दिन नदी या समुद्र के तट पर स्त्रान करने के बाद ऋषियों का तर्पण कर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। बीते साल के पुराने पापों को पुराने यज्ञोपवीत की तरह त्याग देने और साफ नवीन यज्ञोपवीत की तरह नया जीवन शुरू करने की प्रतिज्ञा ली जाती है। इस दिन यजुर्वेदीय ब्रा±मण छह मास तक के लिए वेद का अध्ययन शुरू करते हैं। इस पर्व का एक नाम उपक्रमण भी है जिसका मतलब है नई शुरूआत।
उत्तरांचल में इसे श्रावणी कहते हैं। इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपक्रम होता है। उत्सर्जन, स्त्रान- विघि,ऋषि-तर्पण आदि करके नए यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। ब्राह्मणों का यह सर्वोपरि त्यौहार माना जाता है। वृत्तिवान् ब्रा±मण अपने यज्ञमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते हैं। महाराष्ट्र में यह त्यौहार नारियल-पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं। इस अवसर पर समुद्र के स्वामी वरूण देवता को प्रसन्न करने के लिए नारियल अर्पित करने की परंपरा भी है। अमरनाथ की मशहूर धार्मिक यात्रा गुरू पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन के दिन समाप्त होती है। कहते हैं कि इसी दिन यहां का हिमानी शिवलिंग भी पूरा होता है। अमरनाथ गुफा में हर साल रक्षाबंधन के अवसर पर मेला भी लगता है।
रक्षाबंधन के पकवान
रक्षाबंधन के अवसर पर कुछ विशेष पकवान भी बनाए जाते हैं जैसे घेवर, शकरपारे, नमकपारे और घुघनी। घेवर सावन का विशेष मिष्ठान है यह केवल हलवाई ही बनाते हैं, जबकि शकरपारे और नमकपारे आमतौर पर घर में ही बनाए जाते हैं। घुघनी बनाने के लिए काले चने को उबालकर चटपटा छौंका जाता है। इसको पूरी और दही के साथ खाते हैं। हलवा और खीर भी इस पर्व के फेवरेट डिश हैं।
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